Tuesday 4 November 2014

वो चार चॉक्लेट


आज शाम के वक़्त एक बुज़ुर्ग मेरी गाड़ी रोकते हुए कहते हैं "आप ज़रा मुझे पास के चौपाटी तक छोर दीजिए". अब उन्होने गाड़ी रुकवा ही दी थी तो मैने कहा "चलिए". कोई पुरानी सी शर्ट और पैंट पहने और हाथ मे एक झोला. बैठ गये वो पीछे वाली सीट पे. मंदिर आया उनके मुँह से निकला "जय श्री राम" मज़ार आया, "या परवरदीगार". सामने हनुमान जी का मंदिर दिख रहा था मुझे, मैं इंतेज़ार करना लगा अब जय बजरंग बली भी सुनू. उन्होने कहा "आप मुझे मेरे मोहल्ले के चौक तक छोर दीजिए, बस चौपाटी के सामने मोड़ से 500 मीटर अंदर जाना होगा. मैं थक गया हूँ तो चल ना पाउ उतना, आपको परेशानी तो नही". अब मैने सोचा ये इंडिया और इंग्लेंड का टेस्ट मैच, मैने कहा "हां हां इतना तो कर सकता हूँ". थोड़ी रफ़्तार बढ़ायी और पहुँच गये.

उतर के उन्होने कहा "हाथ तो मिलाओगे" "जी". हाथ मे कुछ मिला मुझे.... वो चार चॉक्लेट. "अरे ये... ये रहने दीजिए, घर मे ब्च्चो को दे दीजिएगा " "बेटा,आप ने कुछ किया तो मैने आपको ये दिया" "पर इसकी ज़रूरत नही थी". "यू टेक इट ऑर थ्रो इट अवे, आइ एम नॉट टेकिंग इट बैक " अँग्रेज़ी मे ये लाइन सुनके मुस्कान आई चेहरे पे, जो शायद इंग्लेंड के विकेट गिरने से ज़्यादा अच्छी थी. "थैन्क्यु" कहा मैने. और वो चल दिए अपना झोला झटकते हुए.

-नितेश पाठक